Dharamveer Bharti ki lokpriya kahaniyan
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- 9789351865537
- 891.433 BHA
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
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Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 891.433 BHA (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 004597 |
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891.433 AJN Nadi ke dweep | 891.433 AMA Sookha patta | 891.433 BHA Gunaho ka devta | 891.433 BHA Dharamveer Bharti ki lokpriya kahaniyan | 891.433 CHA Narak yatra | 891.433 CHA Charitraheen | 891.433 DEV Rochak jaatak kathayen |
‘कुबड़ी-कुबड़ी का हेराना?’’ ‘‘सुई हेरानी।’’ ‘‘सुई लैके का करबे?’’ ‘‘कंथा सीबै!’’ ‘‘कंथा सीके का करबे?’’ ‘‘लकड़ी लाबै!’’ ‘‘लकड़ी लाय के का करबे?’’ ‘‘भात पकइबे!’’ ‘‘भात पकाय के का करबे?’’ ‘‘भात खाबै!’’ ‘‘भात के बदले लात खाबे।’’ और इससे पहले कि कुबड़ी बनी हुई मटकी कुछ कह सके, वे उसे जोर से लात मारते और मटकी मुँह के बल गिर पड़ती। उसकी कुहनियाँ और घुटने छिल जाते, आँख में आँसू आ जाते और ओठ दबाकर वह रुलाई रोकती। बच्चे खुशी से चिल्लाते, ‘‘मार डाला कुबड़ी को! मार डाला कुबड़ी को!’’ —इसी पुस्तक से साहित्य एवं पत्रकारिता को नए प्रतिमान देनेवाले प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संपादक श्री धर्मवीर भारती के लेखन ने सामान्य जन के हृदय को स्पर्श किया। उनकी कहानियाँ मर्मस्पर्शी, संवेदनशील तथा पठनीयता से भरपूर हैं। प्रस्तुत है उनकी ऐसी कहानियाँ, जिन्होंने पाठकों में अपार लोकप्रियता अर्जित की।
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