Chitralekha
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- 9788126715855
- 891.4336 VER
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
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Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 891.4336 VER (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 006119 |
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891.4335 PRE Gaban | 891.4335 PRE Namak ka daroga | 891.4336 TRI Sampooran kahaniyan | 891.4336 VER Chitralekha | 891.4337 SHU Pahala padav | 891.43371 SHR Ret Samadhi | 891.43371 SHR Khali Jagah |
चित्रलेखा’ न केवल भगवतीचरण वर्मा को एक उपन्यासकार के रूप में प्रतिष्ठा दिलानेवाला पहला उपन्यास है, बल्कि हिन्दी के उन विरले उपन्यासों में भी गणनीय है, जिनकी लोकप्रियता बराबर काल की सीमा को लाँघती रही है।
‘चित्रलेखा’ की कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है। पाप क्या है? उसका निवास कहाँ है? —इन प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए महाप्रभु रत्नाम्बर के दो शिष्य, श्वेतांक और विशालदेव, क्रमशः सामन्त बीजगुप्त और योगी कुमारगिरि की शरण में जाते हैं। इनके साथ रहते हुए श्वेतांक और विशालदेव नितान्त भिन्न जीवनानुभवों से गुज़रते हैं। और उनके निष्कर्षों पर महाप्रभु रत्नाम्बर की टिप्पणी है, "संसार में पाप कुछ भी नहीं है, यह केवल मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता का दूसरा नाम है। हम न पाप करते हैं और न पुण्य करते हैं, हम केवल वह करते हैं जो हमें करना पड़ता है।
(https://rajkamalprakashan.com/chitralekha.html)
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