Krishnakali
Material type:![Text](/opac-tmpl/lib/famfamfam/BK.png)
- 9788183619172
- 891.433 SHI
Item type | Current library | Collection | Call number | Copy number | Status | Date due | Barcode | |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
![]() |
Indian Institute of Management LRC General Stacks | Hindi Book | 891.433 SHI (Browse shelf(Opens below)) | 1 | Available | 004810 |
जब ‘कृष्णकली’ लिख रही थी तब लेखनी को विशेष परिश्रम नहीं करना पड़ा, सब कुछ स्वयं ही सहज बनता चला गया था।
जहाँ कलम हाथ में लेती, उस विस्तृत मोहक व्यक्तित्व को, स्मृति बड़े अधिकारपूर्ण लाड़-दुलार से खींच, सम्मुख लाकर खड़ा कर देती, जिसके विचित्र जीवन के रॉ-मैटीरियल से मैंने वह भव्य प्रतिमा गढ़ी थी। ओरछा की मुनीरजान के ही ठसकेदार व्यक्तित्व को सामान्य उलट-पुलटकर मैंने पन्ना की काया गढ़ी थी। जब लिख रही थी तो बार-बार उनके मांसल मधुर कंठ की गूँज कानों में गूँज उठती।
There are no comments on this title.