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082 _a891.433
_bBHA
100 _aBharati, Dharamvir
_911049
245 _aDharamveer Bharti ki lokpriya kahaniyan
260 _bNew Delhi
_aPrabhat Prakashan
_c2021
300 _a184 p.
365 _aINR
_b250.00
520 _a‘कुबड़ी-कुबड़ी का हेराना?’’ ‘‘सुई हेरानी।’’ ‘‘सुई लैके का करबे?’’ ‘‘कंथा सीबै!’’ ‘‘कंथा सीके का करबे?’’ ‘‘लकड़ी लाबै!’’ ‘‘लकड़ी लाय के का करबे?’’ ‘‘भात पकइबे!’’ ‘‘भात पकाय के का करबे?’’ ‘‘भात खाबै!’’ ‘‘भात के बदले लात खाबे।’’ और इससे पहले कि कुबड़ी बनी हुई मटकी कुछ कह सके, वे उसे जोर से लात मारते और मटकी मुँह के बल गिर पड़ती। उसकी कुहनियाँ और घुटने छिल जाते, आँख में आँसू आ जाते और ओठ दबाकर वह रुलाई रोकती। बच्चे खुशी से चिल्लाते, ‘‘मार डाला कुबड़ी को! मार डाला कुबड़ी को!’’ —इसी पुस्तक से साहित्य एवं पत्रकारिता को नए प्रतिमान देनेवाले प्रसिद्ध साहित्यकार एवं संपादक श्री धर्मवीर भारती के लेखन ने सामान्य जन के हृदय को स्पर्श किया। उनकी कहानियाँ मर्मस्पर्शी, संवेदनशील तथा पठनीयता से भरपूर हैं। प्रस्तुत है उनकी ऐसी कहानियाँ, जिन्होंने पाठकों में अपार लोकप्रियता अर्जित की।
650 _aShort stories - Hindi
_912097
650 _aBharti, Dharamveer - Short stories
_912098
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_cBK