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_bMUL
100 _aMuley, Gunakar
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245 _aAlbert Einstein
260 _bRajkamal Prakashan
_aNew Delhi
_c2014
300 _a534 p.
365 _aINR
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520 _aविख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्‍टाइन (1879-1955 ई.) द्वारा प्रतिपादित आपेक्षिता-सिद्धान्‍त को वैज्ञानिक चिन्‍तन की दुनिया में एक क्रन्तिकारी खोज की तरह देखा जाता है। क्वांटम सिद्धान्‍त के आरम्भिक विकास में भी उनका बुनियादी योगदान रहा है। इन दो सिद्धान्‍तों ने भौतिक विश्व की वास्तविकता को समझने के लिए नए साधन तो प्रस्तुत किए ही हैं, मानव-चिन्‍तन को भी बहुत गहराई से प्रभावित किया है। इन्होंने हमें एक नितान्‍त नए अतिसूक्ष्म और अतिविशाल जगत के दर्शन कराए हैं। अब द्रव्य, ऊर्जा, गति, दिक् और काल के स्वरूप को नए नज़रिए से देखा जाने लगा है। आपेक्षिता-सिद्धान्‍त से, विशेषज्ञों को छोड़कर, अन्य सामान्य जन बहुत कम परिचित हैं। इसे एक ‘क्लिष्ट’ सिद्धान्‍त माना जाता है। बात सही भी है। भौतिकी और उच्च गणित के अच्छे ज्ञान के बिना इसे पुर्णतः समझना सम्‍भव नहीं है। मगर आपेक्षिता और क्वांटम सिद्धान्‍त की बुनियादी अवधराणाओं और मुख्य विचारों को विद्यार्थियों व सामान्‍य पाठकों के लिए सुलभ शैली में प्रस्तुत किया जा सकता है—इस बात को यह ग्रन्थ प्रमाणित कर देता है। न केवल हमारे साहित्यकारों, इतिहासकारों व समाजशास्त्रियों को, बल्कि धर्माचार्यों को भी इन सिद्धान्‍तों की मूलभूत धारणाओं और सही निष्कर्षों की जानकारी अवश्य होनी चाहिए। आइंस्‍टाइन और उनके समकालीन यूरोप के अन्य अनेक वैज्ञानिकों के जीवन-संघर्ष को जाने बग़ैर नाजीवाद-फासीवाद की विभीषिका का सही आकलन क़तई सम्‍भव नहीं है। आइंस्‍टाइन की जीवन-गाथा को जानना, न सिर्फ़ विज्ञान के विद्यार्थियों-अध्यापकों के लिए, बल्कि जनसामान्य के लिए भी अत्यावश्यक है। आइंस्‍टाइन ने दो विश्वयुद्धों की विपदाओं को झेला और अमरीका में उन्हें मैकार्थीवाद का मुक़ाबला करना पड़ा। वे विश्व-सरकार के समर्थक थे, वस्तुतः एक विश्व-नागरिक थे। भारत से उन्हें विशेष लगाव था। हिन्‍दी माध्यम से आपेक्षिता, क्वांटम सिद्धान्‍त, आइंस्‍टाइन की संघर्षमय व प्रमाणिक जीवन-गाथा और उनके समाज-चिन्‍तन का अध्ययन करनेवाले पाठकों के लिए एक अत्यन्‍त उपयोगी, संग्रहणीय ग्रन्थ—विस्तृत ‘सन्‍दर्भो व टिप्पणियों’ तथा महत्तपूर्ण परिशिष्टों सहित। (https://rajkamalprakashan.com/albert-einstein.html)
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