000 02143nam a22002057a 4500
005 20240326110036.0
008 240223b |||||||| |||| 00| 0 eng d
020 _a9788126729623
082 _a891.43
_bAKH
100 _aAkhtar, Javed
_914719
245 _aLava
260 _bRajkamal Prakashan
_aNew Delhi
_c2022
300 _a147 p.
365 _aINR
_b199.00
520 _aलावा कुछ बिछड़ने के भी तरीक़े हैं खैर, जाने दो जो गया जैसे थकन से चूर पास आया था इसके गिरा सोते में मुझपर ये शजर क्यों इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में ढूँढ़ता फिरा उसको वो नगर-नगर तन्हा आज वो भी बिछड़ गया हमसे चलिए, ये क़िस्सा भी तमाम हुआ ढलकी शानों से हर यक़ीं की क़बा ज़िंदगी ले रही है अंगड़ाई पुर-सुकूँ लगती है कितनी झील के पानी पे बत पैरों की बेताबियाँ पानी के अंदर देखिए बहुत आसान है पहचान इसकी अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है जो मंतज़िर न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा कि हमने देर लगा दी पलटके आने में आज फिर दिल है कुछ उदास-उदास देखिए आज याद आए कौन न कोई इश्क़ है बाक़ी न कोई परचम है लोग दीवाने भला किसके सबब से हो जाएँ (https://rajkamalprakashan.com/lava.html)
650 _aHindi literature
_914826
650 _aHindi poetry
_913727
650 _aPoem--Hindi
_916518
942 _cBK
_2ddc
999 _c6627
_d6627