000 03603nam a22001937a 4500
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008 240223b |||||||| |||| 00| 0 eng d
020 _a9788126713455
082 _a822
_bTEN
100 _aTendulkar, Vijay
_914796
245 _aGhasiram Kotwal
260 _bRajkamal Prakashan Pvt. Ltd
_aNew Delhi
_c2023
300 _a99 p.
365 _aINR
_b150.00
520 _aइस नाटक में घासीराम और नाना फड़नवीस का व्यक्ति-संघर्ष प्रमुख है, लेकिन तेन्दुलकर ने इस संघर्ष के साथ अपनी विशिष्ट शैली में तत्कालीन सामाजिक एवं राजनैतिक स्थिति का मार्मिक चित्रण भी किया है। सत्ताधारी वर्ग और जनसाधारण की सम्पूर्ण स्थिति पर समय और स्थान के अन्तर से कोई वास्तविक अन्तर नहीं पड़ता। घासीराम हर काल और समाज में होते हैं और हर उस काल और समाज में उसे वैसा बनानेवाले और मौक़ा देखकर उसकी हत्या करनेवाले नाना फड़नवीस भी होते हैं—यह बात तेन्दुलकर ने अपने ढंग से प्रतिपादित की है। घासीराम एक प्रकार से एक प्रसंग मात्र है जिसे तेन्दुलकर ने अपने वक्तव्य की अभिव्यक्ति का एक निमित्त, एक साधन बनाया है। नाटक में नाटककार का उद्देश्य नाना फड़नवीस और तत्कालीन पतनोन्मुख समाज के चित्रण द्वारा शाश्वत सच्चाइयों को उजागर करना है और उसमें वह पूरी तरह सफल हुआ है। यह नाटक एक विशिष्ट समाज-स्थिति की ओर संकेत करता है जो न पुरानी है और न नई। न वह किसी भौगोलिक सीमा-रेखा में बँधी है, न समय से ही। वह स्थान-कालातीत है, इसलिए ‘घासीराम’ और ‘नाना फड़नवीस’ भी स्थान-कालातीत हैं। समाज की स्थितियाँ उन्हें जन्म देती हैं, और वही उनका अन्त भी करती हैं। राजिन्दरनाथ, बृजमोहन शाह, ब.व. कारंत, अलोपी वर्मा, अरविन्द गौड़ तथा कमल वशिष्ठ आदि विभिन्न ख्यातनामा निर्देशक इसके अनेक सफल मंचन कर चुके हैं। (https://rajkamalprakashan.com/ghasiram-kotwal.html)
650 _aPlay
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650 _aHindi literature
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