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Edwina aur Nehru

By: Clement, CatherineMaterial type: TextTextPublication details: New Delhi Rajkamal Prakashan 2019 Description: 445 pISBN: 9788126701445Subject(s): Hindi NovelDDC classification: 891 Summary: नेहरू और एडविना के चरित्रों को केंद्र में रखकर लिखा गया यह ऐतिहासिक उपन्यास तथ्य और कल्पना के अद्भुत मेल से रचा गया है । जो घटित हुआ वह तो सत्य है ही, लेकिन जो घटित नहीं हुआ, वह भी इसलिए एक हद तक सच्चा है क्योंकि उसका घटित होना काफी हद तक संभव था । फ्रांसीसी पाठकों को ध्यान में रखकर लिखी गई यह प्रेम कहानी भारतीय जनमानस को भी उसी रूप में उद्वेलित करेगी इसमें संदेह नहीं । भारत के इतिहास में बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना 1947 का राजनीतिक विभाजन है । यह उपन्यास, इस घटना के अभिकर्ता तमाम महत्त्वपूर्ण पात्रों के भीतर झाँककर इसके कारणों और प्रभावों की दास्तान कहने का प्रयास करता है, और इस तरह दृश्य के अदृश्य सूत्रों का उद्‌घाटन करता है । सार्वजनिक के भीतर जो कुछ निजी है, वही उसका अन्त-सूत्र भी है, और अपनी मर्मस्पर्शिता में कहीं अधिक प्रभावी भी । इन्हीं अन्त-सूत्रों को उनकी मार्मिक संवेदनीयता के साथ ग्रहण कर इस उपन्यास का कथात्मक ताना-बाना बुना गया है । घटनाएँ प्राय: जानी-सुनी हैं - एक अर्थ में पूर्व परिचित । यही स्थिति पात्रों की है - जाने-माने, साहसी, प्रतापी, योद्धाओं का एक पूरा संसार । पर इन सबने मिलकर जो इतिहास रचा उसमें कौन, कहाँ, कितना टूटा-मुद्रा, बना-बिगड़ा, वह घटनाओं का नहीं संवेदनाओं का इतिहास है । एक बिंदु ऐसा होता है जो बाहर और भीतर के तूभाव का संधिस्थल रचता है, जहाँ अक्सर जो बहुत अंतरंग है, निजी है उसके अतिक्रमण की अनंत साधना से बहिरंग की रचना होती है । इसी बिंदु को पकड़ने की कोशिश है इस उपन्यास में । समय के दो महत्वपूर्ण पात्रों की केन्द्रीयता से उठकर समय को फिर से रचने की - उसकी घटनात्मकता में नहीं, मार्मिकता में |
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Hindi Book 891 CLE (Browse shelf(Opens below)) 1 Available 003038

नेहरू और एडविना के चरित्रों को केंद्र में रखकर लिखा गया यह ऐतिहासिक उपन्यास तथ्य और कल्पना के अद्भुत मेल से रचा गया है । जो घटित हुआ वह तो सत्य है ही, लेकिन जो घटित नहीं हुआ, वह भी इसलिए एक हद तक सच्चा है क्योंकि उसका घटित होना काफी हद तक संभव था । फ्रांसीसी पाठकों को ध्यान में रखकर लिखी गई यह प्रेम कहानी भारतीय जनमानस को भी उसी रूप में उद्वेलित करेगी इसमें संदेह नहीं । भारत के इतिहास में बीसवीं शताब्दी की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना 1947 का राजनीतिक विभाजन है । यह उपन्यास, इस घटना के अभिकर्ता तमाम महत्त्वपूर्ण पात्रों के भीतर झाँककर इसके कारणों और प्रभावों की दास्तान कहने का प्रयास करता है, और इस तरह दृश्य के अदृश्य सूत्रों का उद्‌घाटन करता है । सार्वजनिक के भीतर जो कुछ निजी है, वही उसका अन्त-सूत्र भी है, और अपनी मर्मस्पर्शिता में कहीं अधिक प्रभावी भी । इन्हीं अन्त-सूत्रों को उनकी मार्मिक संवेदनीयता के साथ ग्रहण कर इस उपन्यास का कथात्मक ताना-बाना बुना गया है । घटनाएँ प्राय: जानी-सुनी हैं - एक अर्थ में पूर्व परिचित । यही स्थिति पात्रों की है - जाने-माने, साहसी, प्रतापी, योद्धाओं का एक पूरा संसार । पर इन सबने मिलकर जो इतिहास रचा उसमें कौन, कहाँ, कितना टूटा-मुद्रा, बना-बिगड़ा, वह घटनाओं का नहीं संवेदनाओं का इतिहास है । एक बिंदु ऐसा होता है जो बाहर और भीतर के तूभाव का संधिस्थल रचता है, जहाँ अक्सर जो बहुत अंतरंग है, निजी है उसके अतिक्रमण की अनंत साधना से बहिरंग की रचना होती है । इसी बिंदु को पकड़ने की कोशिश है इस उपन्यास में । समय के दो महत्वपूर्ण पात्रों की केन्द्रीयता से उठकर समय को फिर से रचने की - उसकी घटनात्मकता में नहीं, मार्मिकता में |

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